मैं रात की बदन पे लिखना चाहता हूँ नग्में, जमाने को | हिंदी शायरी Video

"मैं रात की बदन पे लिखना चाहता हूँ नग्में, जमाने को अपनी पहचान बताने के लिए। गायब होता जा रहा है गुफ़्तगू से आदमी, लम्हें कहाँ बचे अब हँसने -हँसाने के लिए। जंग की बाहों में घिरती जा रही ये दुनिया, धूप तरस रही है आंगन में आने के लिए। कहीं मुरझा न जाए उसके हुस्न का बगीचा, चलता हूँ उस तपिश से उसे बचाने के लिए। #रामकेश ©Navash2411 "

मैं रात की बदन पे लिखना चाहता हूँ नग्में, जमाने को अपनी पहचान बताने के लिए। गायब होता जा रहा है गुफ़्तगू से आदमी, लम्हें कहाँ बचे अब हँसने -हँसाने के लिए। जंग की बाहों में घिरती जा रही ये दुनिया, धूप तरस रही है आंगन में आने के लिए। कहीं मुरझा न जाए उसके हुस्न का बगीचा, चलता हूँ उस तपिश से उसे बचाने के लिए। #रामकेश ©Navash2411

#नवश

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