कमलेश ऐसी राह पर चला हूँ,जहाँ कोई साथी न मिला
राह में एक जंगल भी था ,जहाँ कोई शेर, हाथी न मिला।
डर से भरा हुआ हूँ, पर अकेले चलना भी मजबूरी है
यारा समझना भी है क्या जरूरी, क्या गैरज़रूरी है।
प्रार्थना करते है सब, पर कोई भी प्रार्थी न मिला।
कमलेश ऐसी राह पर चला हूँ,जहाँ कोई साथी न मिला
सब जानते है जिंदगी भरी है बेइंतिहा सवालों से
नई चाबी चाहिए हर रोज, कोई न बचा इन तालों से
परीक्षा है जिंदगी माने सब, पर कोई परीक्षार्थी न मिला।
कमलेश ऐसी राह पर चला हूँ,जहाँ कोई साथी न मिला
©Kamlesh Kandpal
#alone