तालमेल बैठाना पड़ता, मिलने आना-जाना पड़ता, मज | हिंदी कविता

"तालमेल बैठाना पड़ता, मिलने आना-जाना पड़ता, मज़बूरी को दरकिनार कर, यारा फ़र्ज़ निभाना पड़ता, बदले हों हालात तो सबको, वक्त की धुन पे गाना पड़ता, चोर के मन में रहता खटका, राह में जिसके थाना पड़ता, खो जाने की फ़िक्र सताए, उस मंज़र तक आना पड़ता, हार मानकर बैठ न अब तू, विजयी सदा सयाना पड़ता, जैसा देश भेष भी 'गुंजन', अपने-आप बनाना पड़ता, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra"

 तालमेल   बैठाना   पड़ता,
मिलने आना-जाना पड़ता,

मज़बूरी को दरकिनार कर,
यारा  फ़र्ज़ निभाना पड़ता,

बदले हों हालात तो सबको,
वक्त की धुन पे गाना पड़ता,

चोर के मन में रहता खटका,
राह में जिसके थाना पड़ता,

खो जाने की  फ़िक्र  सताए,
उस मंज़र तक आना पड़ता,

हार मानकर बैठ न अब तू,
विजयी सदा सयाना पड़ता,

जैसा देश  भेष भी  'गुंजन',
अपने-आप  बनाना पड़ता,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' 
      प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

तालमेल बैठाना पड़ता, मिलने आना-जाना पड़ता, मज़बूरी को दरकिनार कर, यारा फ़र्ज़ निभाना पड़ता, बदले हों हालात तो सबको, वक्त की धुन पे गाना पड़ता, चोर के मन में रहता खटका, राह में जिसके थाना पड़ता, खो जाने की फ़िक्र सताए, उस मंज़र तक आना पड़ता, हार मानकर बैठ न अब तू, विजयी सदा सयाना पड़ता, जैसा देश भेष भी 'गुंजन', अपने-आप बनाना पड़ता, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#ताल-मेल बैठाना पड़ता#

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