धैर्य साथ यदि न छोड़ा, लहरों की दिशा बदल लूँगा। खुद | हिंदी कविता

"धैर्य साथ यदि न छोड़ा, लहरों की दिशा बदल लूँगा। खुद ही राह नहीं भटका,तो पथ पत्थर से सजवा दूँगा। दो-चार बूँद पड़ जाने से, मिट्टी के मका नहीं गिरते। गर बारिस भी कोई साज़िश है,तो ये साज़िश विफल करा दूँगा। गर्व नहीं यह ढाढ़स है, खुद के मन की पीड़ा को। यदि दुख ही मेरा सुख तेरा है,तो अब खुद की खुशी बढ़ा लूँगा।। दो-चार बूँद गिर जाने से आँखें सूख नहीं जाती। गर भीगी पलकों पर हँसता है,तो अब पलकें अपनी सुखा लूँगा।। ©Shiva Nand Tiwari"

 धैर्य साथ यदि न छोड़ा,
लहरों की दिशा बदल लूँगा।
खुद ही राह नहीं भटका,तो
पथ पत्थर से सजवा दूँगा।
दो-चार बूँद पड़ जाने से,
मिट्टी के मका नहीं गिरते।
गर बारिस भी कोई साज़िश है,तो
ये साज़िश विफल करा दूँगा।
गर्व नहीं यह ढाढ़स है,
खुद के मन की पीड़ा को।
यदि दुख ही मेरा सुख तेरा है,तो
अब खुद की खुशी बढ़ा लूँगा।।
दो-चार बूँद गिर जाने से 
आँखें सूख नहीं जाती।
गर भीगी पलकों पर हँसता है,तो
अब पलकें अपनी सुखा लूँगा।।

©Shiva Nand Tiwari

धैर्य साथ यदि न छोड़ा, लहरों की दिशा बदल लूँगा। खुद ही राह नहीं भटका,तो पथ पत्थर से सजवा दूँगा। दो-चार बूँद पड़ जाने से, मिट्टी के मका नहीं गिरते। गर बारिस भी कोई साज़िश है,तो ये साज़िश विफल करा दूँगा। गर्व नहीं यह ढाढ़स है, खुद के मन की पीड़ा को। यदि दुख ही मेरा सुख तेरा है,तो अब खुद की खुशी बढ़ा लूँगा।। दो-चार बूँद गिर जाने से आँखें सूख नहीं जाती। गर भीगी पलकों पर हँसता है,तो अब पलकें अपनी सुखा लूँगा।। ©Shiva Nand Tiwari

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