कल जो तुमने बोला था
वो शब्द ठहर गये थे
लोगों के जहन में
किसी खास तिलिस्म
की चाह में।
पर समय आ रहा
कह रहा
बहुत हुआ
जमीं पर कुछ नहीं
सूखा विरान रेगिस्तान है
आवाजें सुनाई पड़ती हैं
सिर्फ अवसाद और चित्कार की
वो शब्द ही अब
खाने को दौड़ते हैं
जो तुमने कहे थे कभी
वो शब्द अब हताश
और निराश से दिखते हैं
बताओ
कब तक रहें
बातों की आस में
कब तक फँसे
शब्दों के जाल मे
कल जो तुमने बोला था...
©vs dixit
#कलजोतुमनेबोलाथा