हमने कभी मंजिलों के पीछे नहीं दौड़ा, जो ख्वाब थे, | हिंदी शायरी

"हमने कभी मंजिलों के पीछे नहीं दौड़ा, जो ख्वाब थे, उन्हें अपनी राहों में पाए है। तुम हो वो जो बाहरी दुनिया से गाफिल रहते हो, हम वो हैं, जिनकी पहचान अपनी साए से बनाए है। जो वक्त की रफ्तार में कभी थमा नहीं, उनकी यादों में हम खामोशी से समाए हैं। हमने कभी तमन्ना नहीं की शोहरत की, जो दिल में था, वही आंखों में छुपाए हैं। कभी किसी से न उम्मीदें लगाईं, किस्मत में जो लिखा था, वो खुदा से पाए हैं। इस दुनिया में रंग सबको मिलते हैं, हम अपनी दुनिया, बस सादगी से सजाए है। ©नवनीत ठाकुर"

 हमने कभी मंजिलों के पीछे नहीं दौड़ा,
जो ख्वाब थे, उन्हें अपनी राहों में पाए है।

तुम हो वो जो बाहरी दुनिया से गाफिल रहते हो,
हम वो हैं, जिनकी पहचान अपनी साए से बनाए है।

जो वक्त की रफ्तार में कभी थमा नहीं,
उनकी यादों में हम खामोशी से समाए हैं।

हमने कभी तमन्ना नहीं की शोहरत की,
जो दिल में था, वही आंखों में छुपाए हैं।

कभी किसी से न उम्मीदें लगाईं,
किस्मत में जो लिखा था, वो खुदा से पाए हैं।

इस दुनिया में रंग सबको मिलते हैं,
हम अपनी दुनिया, बस सादगी से सजाए है।

©नवनीत ठाकुर

हमने कभी मंजिलों के पीछे नहीं दौड़ा, जो ख्वाब थे, उन्हें अपनी राहों में पाए है। तुम हो वो जो बाहरी दुनिया से गाफिल रहते हो, हम वो हैं, जिनकी पहचान अपनी साए से बनाए है। जो वक्त की रफ्तार में कभी थमा नहीं, उनकी यादों में हम खामोशी से समाए हैं। हमने कभी तमन्ना नहीं की शोहरत की, जो दिल में था, वही आंखों में छुपाए हैं। कभी किसी से न उम्मीदें लगाईं, किस्मत में जो लिखा था, वो खुदा से पाए हैं। इस दुनिया में रंग सबको मिलते हैं, हम अपनी दुनिया, बस सादगी से सजाए है। ©नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर

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