रोज सोचता हूं कल से बदल दूंगा सब कुछ, रोज कल आता | हिंदी Poetry

"रोज सोचता हूं कल से बदल दूंगा सब कुछ, रोज कल आता है पर बदलता नहीं कुछ, रोज़ आँखों की दरिया से पोंछ के कल का आइना साफ़ करता हूँ, फिर सुबह होती है और संभलता नहीं कुछ, रोज पता रहता है मंजिल पर मिलता नहीं कुछ, रोज़ मन में हजारो बीज बोता हु पर खिलता नहीं कुछ। रिश्ते- नाते, धन- दौलत, प्यार- परिवार ,घर -द्वार सब में रोज खो जाता हूं, रोज पता होता है समय के आगे पर चलता नहीं कुछ । © Dheeraj kumar"

 रोज सोचता हूं कल से बदल दूंगा सब कुछ,
 रोज कल आता है पर बदलता नहीं कुछ,

 रोज़ आँखों की दरिया से पोंछ के कल का आइना साफ़ करता हूँ,
 फिर सुबह होती है और संभलता नहीं कुछ,

 रोज पता रहता है मंजिल पर मिलता नहीं कुछ,
 रोज़ मन में हजारो बीज बोता हु पर खिलता नहीं कुछ।

 रिश्ते- नाते, धन- दौलत, प्यार- परिवार ,घर -द्वार सब में रोज खो जाता हूं,
 रोज पता होता है समय के आगे पर चलता नहीं कुछ ।

© Dheeraj kumar

रोज सोचता हूं कल से बदल दूंगा सब कुछ, रोज कल आता है पर बदलता नहीं कुछ, रोज़ आँखों की दरिया से पोंछ के कल का आइना साफ़ करता हूँ, फिर सुबह होती है और संभलता नहीं कुछ, रोज पता रहता है मंजिल पर मिलता नहीं कुछ, रोज़ मन में हजारो बीज बोता हु पर खिलता नहीं कुछ। रिश्ते- नाते, धन- दौलत, प्यार- परिवार ,घर -द्वार सब में रोज खो जाता हूं, रोज पता होता है समय के आगे पर चलता नहीं कुछ । © Dheeraj kumar

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