अरे रकीब सुना है तुझे तेरी माशूका तुझे छोड़ कर चली गई
तेरे इश्क के पतंग का डोर काट के किसी और के साथ चली गई
जो तुझे नसीहत दीया करता था तूरा यार मोहब्बत से रुसवा होने का
आज उस बेवफा ने अपनी पक्की डोर से अनुज की पतंग मे मोहब्बत का गाठ बांध कर के चली गई
अाज रात से ही तेरी आंखें बड़ी लाल है रकीब कुछ तो हुआ होगा
मुझे पता है तू उस बेवफा की याद में रात भर रोया होगा
आज कटी है जो तेरे मोहल्ले की पतंग वो तेरे यार का होगा
उस बेवफा के साथ आज रात अनुज हमबिस्तर हुआ होगा
तू खड़ा क्यू है इस पेचीदी सी गली में रकीब
आज उस बेवफा की निकाह है क्या
जो उससे हाथों में गुलदस्ता है वो तेरा दिया हुआ है क्या
तेरे मोहल्ले का तेरा यार अनुज आज वो सेहरे में है क्या
©Anuj Kushwaha
Rakib
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