दर्द इस दर्द से मुझको , बीमारी बहुत है । मगर इसकी | हिंदी कविता

"दर्द इस दर्द से मुझको , बीमारी बहुत है । मगर इसकी भी अपनी , जिम्मेदारी बहुत है ।। एक आस की किरन , दिखती तो मुझको भी है । मगर इसमें चिराग़ की , मक्कारी बहुत है ।। हर इक लम्हा , मैं कैद कर लेता शायद । वक्त की , हालातों की , मारामारी बहुत है ।। कभी ग़र वक्त हो , तो करीब भी आना । देख लेना जिस्म में , चिंगारी बहुत है ।।"

 दर्द

इस दर्द से मुझको , बीमारी बहुत है ।
मगर इसकी भी अपनी , जिम्मेदारी बहुत है ।।

एक आस की किरन , दिखती तो मुझको भी है ।
मगर इसमें चिराग़ की , मक्कारी बहुत है ।।

हर इक लम्हा , मैं कैद कर लेता शायद ।
वक्त की , हालातों की , मारामारी बहुत है ।।

कभी ग़र वक्त हो , तो करीब भी आना ।
देख लेना जिस्म में , चिंगारी बहुत है ।।

दर्द इस दर्द से मुझको , बीमारी बहुत है । मगर इसकी भी अपनी , जिम्मेदारी बहुत है ।। एक आस की किरन , दिखती तो मुझको भी है । मगर इसमें चिराग़ की , मक्कारी बहुत है ।। हर इक लम्हा , मैं कैद कर लेता शायद । वक्त की , हालातों की , मारामारी बहुत है ।। कभी ग़र वक्त हो , तो करीब भी आना । देख लेना जिस्म में , चिंगारी बहुत है ।।

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