दर्द
इस दर्द से मुझको , बीमारी बहुत है ।
मगर इसकी भी अपनी , जिम्मेदारी बहुत है ।।
एक आस की किरन , दिखती तो मुझको भी है ।
मगर इसमें चिराग़ की , मक्कारी बहुत है ।।
हर इक लम्हा , मैं कैद कर लेता शायद ।
वक्त की , हालातों की , मारामारी बहुत है ।।
कभी ग़र वक्त हो , तो करीब भी आना ।
देख लेना जिस्म में , चिंगारी बहुत है ।।
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