ये कहाॅं लिखा है कि हम ही हर रोज़ जा कर
किसी के दरवाज़े पर दस्तक दें।
दरवाज़ा तो हमारे भी घर का खुला है,
वो लोग कभी ख़ुद भी तो आ सकते हैं
अगर आने की चाहत रखते हैं ।
और जो लोग हमें जानते हुए भी
हमें नज़र-अंदाज़ करते हैं
हम भी फ़िर उन लोगों के घर नहीं जाते।
जो सवाल हमारे लिए होते ही नहीं
हम भी फ़िर उन सवालों का जवाब नहीं देते ।
हर बार बात अना की नहीं होती लेकिन,
बार-बार हम भी अपनी ख़ुद्दारी से
समझौता नहीं कर सकते ।
और जो लोग हमारी self-respect की
respect नहीं करते
हम भी फ़िर उनके आगे बार-बार नहीं झुकते ।
©Sh@kila Niy@z
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