कुछ पल की पूर्णिमा थी , फिर अमावस्य आई थी । बूझ | हिंदी Love

"कुछ पल की पूर्णिमा थी , फिर अमावस्य आई थी । बूझ गए वो दीए , जो गत वर्ष मैंने जलाई थी। रोज तलाशती हूँ उस दीए को , जो बूझ कभी पाए ना । कब आएगी वो दीवाली ? फिर अमावस्य‌‌ आए ना । इस बार भी दीपक जलाऊँ‌गी‌ , पर्वत - सी बाती की । तुम क्या बिगाडोगे‌ वारि‌ , तेरे ऊपर से जाऊँगी । ©Annu Sinha"

 कुछ पल की पूर्णिमा थी , 
फिर अमावस्य आई थी । 
बूझ गए वो दीए , 
जो गत वर्ष मैंने जलाई थी।
 
रोज तलाशती हूँ उस दीए को , 
जो बूझ कभी पाए ना । 
कब आएगी वो दीवाली ? 
फिर अमावस्य‌‌ आए ना । 

इस बार भी दीपक जलाऊँ‌गी‌ , 
पर्वत -  सी बाती की । 
तुम क्या बिगाडोगे‌ वारि‌ , 
तेरे ऊपर से जाऊँगी ।

©Annu Sinha

कुछ पल की पूर्णिमा थी , फिर अमावस्य आई थी । बूझ गए वो दीए , जो गत वर्ष मैंने जलाई थी। रोज तलाशती हूँ उस दीए को , जो बूझ कभी पाए ना । कब आएगी वो दीवाली ? फिर अमावस्य‌‌ आए ना । इस बार भी दीपक जलाऊँ‌गी‌ , पर्वत - सी बाती की । तुम क्या बिगाडोगे‌ वारि‌ , तेरे ऊपर से जाऊँगी । ©Annu Sinha

#Diwali

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