White मिलने इंतिज़ार में दिल है, वस्ल के बहाने ढू | हिंदी शायरी

"White मिलने इंतिज़ार में दिल है, वस्ल के बहाने ढूँढ़ता बहुत है, बड़ा वक़्त लग गया अब, यह वक़्त धीमा चलता बहुत है, पल-दो-पल की रह जाती ग़र ख़्वाईश, कोई बात न रहती, यह तिश्नगी जो उभरी है दिल में, तिश्नगी से मरता बहुत है, अब तो सिलवटें भी भीगा करती है, इंतिज़ार में उनके अब, हसरतों से दूर होने से ख़ुदी ये, क्यों यहाँ ड़रता बहुत है, कहने है रम्ज़-ओ-राज़ रखे हुए, सभी सर-ए-आम उनके, उनको ही चश्मदीद कर के, यह उनसे कहता बहुत है, आग़ोश में लिए हुए संभल कर चला, काश वो देखेंगे यह, चंद लम्हों की ग़लती न हो तो, बस संभलता बहुत है, ©Vishal Pandhare"

 White मिलने इंतिज़ार में  दिल है, वस्ल के बहाने ढूँढ़ता बहुत है,
बड़ा वक़्त लग गया अब, यह वक़्त धीमा चलता बहुत है,

पल-दो-पल की रह जाती ग़र ख़्वाईश, कोई बात न रहती,
यह तिश्नगी जो उभरी है दिल में, तिश्नगी से मरता बहुत है,

अब तो सिलवटें भी भीगा करती है, इंतिज़ार में उनके अब,
हसरतों से दूर होने से ख़ुदी ये, क्यों यहाँ ड़रता बहुत है,

कहने है रम्ज़-ओ-राज़ रखे हुए, सभी सर-ए-आम उनके,
उनको ही चश्मदीद कर के, यह उनसे कहता बहुत है,

आग़ोश में लिए हुए संभल कर चला, काश वो देखेंगे यह,
चंद लम्हों की ग़लती न हो तो, बस संभलता बहुत है,

©Vishal Pandhare

White मिलने इंतिज़ार में दिल है, वस्ल के बहाने ढूँढ़ता बहुत है, बड़ा वक़्त लग गया अब, यह वक़्त धीमा चलता बहुत है, पल-दो-पल की रह जाती ग़र ख़्वाईश, कोई बात न रहती, यह तिश्नगी जो उभरी है दिल में, तिश्नगी से मरता बहुत है, अब तो सिलवटें भी भीगा करती है, इंतिज़ार में उनके अब, हसरतों से दूर होने से ख़ुदी ये, क्यों यहाँ ड़रता बहुत है, कहने है रम्ज़-ओ-राज़ रखे हुए, सभी सर-ए-आम उनके, उनको ही चश्मदीद कर के, यह उनसे कहता बहुत है, आग़ोश में लिए हुए संभल कर चला, काश वो देखेंगे यह, चंद लम्हों की ग़लती न हो तो, बस संभलता बहुत है, ©Vishal Pandhare

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