नाम भले ही गांव का लिया हो लेकिन हर शहर हर गांव के हर अनुभवी माता पिता, उनके कमाने और जमाना जानने वाली मॉडर्न जमाने के भाईयो ने खाया बच्चियों का भविष्य।
हर बच्ची नहीं होगी होनहार जैसे आपका हर बेटा प्रधानमंत्री और कलेक्टर नहीं है फिर भी वे उनको आत्म निर्भर बनाने के लिए जी- जान लगा देते हो, घर बाहर में थोड़ी इज्जत मिलने से आत्मविश्वास भी आ जाता है उनमें, अगर बेटियां गलत रास्ते पर निकल जाती है तो वो भी आपकी गलती है कि उसे सही गलत में फर्क करना नहीं सीखा पाते।
होनहार क्या और कमजोर क्या, एक ही तराजु में तोलते है दोनो को।
लड़की है तो शादी कर दो , किसीको क्या मतलब उसे भी आगे बढ़ाए, अपने पैरो पर खड़ा करे, जब बिना अपने पैरों पर खड़ी हुए जीवन जीती है और कभी मुसीबत आजाएं तो मां बाप की ओर देखती है और ये सोच कर दुःख कष्ट अन्याय सहती है की अब क्या किसी के लिए बोझ बनू,अगर शादी से पहले मां बाप को ये खयाल आता की अपनी बच्ची को सशक्त करें फिर जब वो कभी किसी मुसीबत में होती तो सब हो जाने के बाद आपको पता लगता की बच्ची के जीवन में आई थी कोई मुसीबत और उसने खुद निपटा लिया उसे। लेकिन हमारे पुजनीय माता पिता नामक परमात्मा/महानुभावों को सब सुझती है बस बेटी के लिए ऐसी बातें ही नही सूझती।
आप भले ही बच्चियों की शादी करके अपने मन में राज़ी हो लो लेकिन जब जब उनके जीवन में आयेंगी मुसीबतें तब वो ना चाहते हुए भी देंगी केवल मां बाप को ही बददुआएं।