White मैं शिक्षक हूँ पहले ये शब्द, आध्यात्मिक चेतन | हिंदी कविता

"White मैं शिक्षक हूँ पहले ये शब्द, आध्यात्मिक चेतना का उत्सर्ग था, ज्ञान की रोशनी, जिज्ञासा का पथप्रदर्शक था, समर्पण की मूरत, संवेदनाओं का सागर, आशाओं का दीपक, जो जलता था हर घर। पर आज, ये शब्द बन गया है तिरस्कार का दंश, आवाज़ में अवमानना का वजन है अधिक, सम्मान की जगह व्यंग्य और ठहाके हैं, निष्ठा को आज नापते हैं पैसों के तराजू में। मगर मैं तो वही हूँ, जिसने सिखाई थी उड़ान सपनों को, जिसने थामी थी नन्हे हाथों की उँगलियाँ, जो हर ग़लती पर कहता था, "कोई बात नहीं, फिर से कोशिश करो।" अब भी मैं वही हूँ, जो अंधेरों में रोशनी का नाम लिए खड़ा हूँ, भले ही शब्दों में चुभन हो, पर मेरा दिल अब भी सिर्फ़ ज्ञान की सेवा में डटा है। मैं शिक्षक हूँ, और ये जिम्मेदारी, मेरे लिए सिर्फ़ एक काम नहीं, एक व्रत है, एक धर्म है, जिसे मैं हर कठिनाई के बावजूद निभाऊँगा। राजीव ©samandar Speaks"

 White मैं शिक्षक हूँ
पहले ये शब्द, आध्यात्मिक चेतना का उत्सर्ग था,
ज्ञान की रोशनी, जिज्ञासा का पथप्रदर्शक था,
समर्पण की मूरत, संवेदनाओं का सागर,
आशाओं का दीपक, जो जलता था हर घर।
पर आज,
ये शब्द बन गया है तिरस्कार का दंश,
आवाज़ में अवमानना का वजन है अधिक,
सम्मान की जगह व्यंग्य और ठहाके हैं,
निष्ठा को आज नापते हैं पैसों के तराजू में।
मगर मैं तो वही हूँ,
जिसने सिखाई थी उड़ान सपनों को,
जिसने थामी थी नन्हे हाथों की उँगलियाँ,
जो हर ग़लती पर कहता था,
 "कोई बात नहीं, फिर से कोशिश करो।"
अब भी मैं वही हूँ,
जो अंधेरों में रोशनी का नाम लिए खड़ा हूँ,
भले ही शब्दों में चुभन हो,
पर मेरा दिल अब भी सिर्फ़ ज्ञान की सेवा में डटा है।
मैं शिक्षक हूँ,
और ये जिम्मेदारी, मेरे लिए सिर्फ़ एक काम नहीं,
एक व्रत है, एक धर्म है,
जिसे मैं हर कठिनाई के बावजूद निभाऊँगा।

राजीव

©samandar Speaks

White मैं शिक्षक हूँ पहले ये शब्द, आध्यात्मिक चेतना का उत्सर्ग था, ज्ञान की रोशनी, जिज्ञासा का पथप्रदर्शक था, समर्पण की मूरत, संवेदनाओं का सागर, आशाओं का दीपक, जो जलता था हर घर। पर आज, ये शब्द बन गया है तिरस्कार का दंश, आवाज़ में अवमानना का वजन है अधिक, सम्मान की जगह व्यंग्य और ठहाके हैं, निष्ठा को आज नापते हैं पैसों के तराजू में। मगर मैं तो वही हूँ, जिसने सिखाई थी उड़ान सपनों को, जिसने थामी थी नन्हे हाथों की उँगलियाँ, जो हर ग़लती पर कहता था, "कोई बात नहीं, फिर से कोशिश करो।" अब भी मैं वही हूँ, जो अंधेरों में रोशनी का नाम लिए खड़ा हूँ, भले ही शब्दों में चुभन हो, पर मेरा दिल अब भी सिर्फ़ ज्ञान की सेवा में डटा है। मैं शिक्षक हूँ, और ये जिम्मेदारी, मेरे लिए सिर्फ़ एक काम नहीं, एक व्रत है, एक धर्म है, जिसे मैं हर कठिनाई के बावजूद निभाऊँगा। राजीव ©samandar Speaks

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