#OpenPoetry किवाड़ खुले है, ज़िन्दगी अब तो आजा।
आँसू भी सूख गये, ज़िन्दगी अब तो आज।
के फुर्सत तुझे नही, या मैं तुझमे ही कहीं फंसा हूँ।
देख अकेला हूँ, कभी कभी खुद पे ही हँसा हूँ।
के जागु आधी पूरी रातो को, तु सवेरे भी ना आया।
चमके सूरज आंखों मे, मिट ता ना काला सांया।
के तु रूठ गयी, या मैं पीछे छूट गया।
मैंने तुझे सब कुछ दे दिया, या कोई मुझे लूट गया।
कितने हसीन थे, जीने मुझे वो सपने थे।
नींद भी रुस्वा है मुझसे,
तुम तो आ जाते, तुम तो अपने थे।
क्यों रूठा है मुझसे, कर ना बात साँझा,
हवाओं से या किरणों से, तु जैसे भी आजा।
किवाड़ खुले है, ज़िन्दगी अब तो आजा,
आँसू भी सूख गये, ज़िन्दगी अब तो आजा।
के ढलता सूरज हो या नील गगन का चाँद,
खुद को उसमे भी रोक लिया।
हर त्योहार तुझे पाने को, हर पल मे खुदको झोंक दिया।
क्यों तु रास्ता खोता है,
मुझे जगा के, तु गहरी नींद सोता है।
ए जमाने तु मिलाने की कोशिश तो कर,
आखिर क्यों ऐसा होता है।
के तु आयेगी या मैं मर ही जाउ,
तु मिल ना सकि, चलो खुदा को ही पाउ।
प्लेअसे तु आज, आके ना जा।
किवाड़ खुले है, जिंदगी अब तो आजा।
आँसू भी सूख गये, ज़िन्दगी अब तो आजा।
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