जब मजहब नहीं था तब सागर भी था, दरख्त भी थे कुद | हिंदी शायरी

"जब मजहब नहीं था तब सागर भी था, दरख्त भी थे कुदरत की मेहर भी थी कमलेश कुदरत कुछ क़ानून सख्त भी थे ©Kamlesh Kandpal"

 जब मजहब नहीं था 
तब  सागर भी था, दरख्त भी थे 

कुदरत की मेहर भी थी कमलेश 
कुदरत कुछ क़ानून सख्त भी थे

©Kamlesh Kandpal

जब मजहब नहीं था तब सागर भी था, दरख्त भी थे कुदरत की मेहर भी थी कमलेश कुदरत कुछ क़ानून सख्त भी थे ©Kamlesh Kandpal

#kudrat

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