White गुदड़ी के लाल "शास्त्री जी"
(हुबहु हाल विद्यार्थी जी)
गरीबी अभावों में हुए पैदा जो
वो भारत के भाल बने।
मातृभूमि के आंचल में पले बढ़े
वो गुदड़ी के लाल जनें।।
पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव
मैया रामदुलारी थी।
मुगलसराय के पावन भूमि 2
अक्टूबर शुभ घड़ी थी।।
पिता के गुजर जानें पर
घर में छाई दुखहाली थी।
ननिहाल मिर्जापुर रहने लगी
अम्मा शास्त्री को संभाली थी।।
गुणवान चतुर मेघावी बालक
स्कूली शिक्षा प्रारम्भ किए।
माथे पर बस्ता कपड़ा रखकर
गंगा नदी को लांघ दिए।।
काशी विद्यापीठ से बहादुर जब
शास्त्री उपाधि प्राप्त किए।
नाम के आगे जातिसूचक शब्द
श्रीवास्तव सरनेम समाप्त किए।।
लोक कल्याण देशहित भक्ती में
शास्त्री जी खुदको किए समर्पित।
सच्चा देशभक्त लोकतांत्रिक
स्वराज को किए सत्य प्रदर्शित।।
विनम्र राष्टभक्त ईमानदार
निष्ठवान प्रतीक पहचान हुए।
भारत के अद्वितीय प्रधानमंत्री
लाल बहादुर शास्त्री नाम हुए।।
छुआछूत गरीबी अज्ञानता को
दूर करने कार्य विशेष किए।
आपस में लड़ने के बजाए
मिलकर रहने को सनेश दिए।।
अक्सर कम साधनों के कारण वो
सदा जीवन जिया करते थे।
फटे कुर्ते अनु पत्नी को देकर
रुमाल बनवाकर लिया करते थे।।
अकाल भुखमरी बिप्पती के
समय नागरिकों के निदान बने।
एक दिवसीय व्रत उपवास कर
भुखमरी मिटाने का ज्ञान दिए।।
बापू गांधी जी थे उनके आदर्श
रघुपति राघव राम सजे।
जय जवान जय किसान गूंजे
जय भारती हिन्दुस्तान भजे।।
घर समाज देश खुश रहे यहीं
उनकी हार्दिक इक्शा थीं।
फले फूले सबका शुभ जीवन
प्रकाशित विद्यार्थी की शिक्षा थी।।
स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी
भोजपुर बिहार
©Prakash Vidyarthi
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