White अनुच्छेद लिखूँ या बनू कवि दम लगता है बाबू जी
उसकी उपमा में लेख लिखूँ दिन रात मगर
हर शब्द उसपर आ करके, थोड़ा कम लगता है बाबू जी
वो बात करे तो जन्नत है, जो करे मेरी तो मन्नत है
उसकी खुशियाँ मेरी बरकत जो थाम ले दामन किस्मत है
हो धूप की गर्दिश, लू की बारिस
संग उसके हर मौसम सबनम लगता है बाबू जी
वो नजर मिलाकर नजर हटा ले , घबराकर एक ओर हटे
बात कंही जो मेरी हो , शर्माकर खुद में सिमटे
मुस्कान उसकी आयुर्वेद सी है
दुनिया भर के दर्द में भी मरहम लगता है बाबू जी
वो शांत सरल जैसे हों कमल , मर्यादित जैसे राम नकल
इत्र सी घुलती बातें उसकी, जैसे धरती पर बूंदों का संबल
बहुत मुश्किल से चुना है उसको दुनिया देखकर
मेरे दिल को किसी के भा जाने में वक़्त लगता है बाबू जी
.................... शिवी
©shivi voice
#ik_pyar_ka_nagma_hai