मुझे मुझमें मस्त रहने दो,
अस्त न हो जाऊं कहीं इस भीड़ में,
मुझे मैं जो हूँ वो रहने दो,
उलझकर मै तराशती खुदको,
मुझे यूँ ही उलझी रहने दो,
मेरी दुनिया औरो से परे है,
मुझे मेरे जहां में खुश रहने दो,
मुझे मैं जो हूँ वो रहने दो,
कभी नासमझ तो कभी समझदार,
मेरी खोज मुझे ही करने दो,
लड़खड़ा जाऊ अगर जीवन राह में,
मुझे ख़ुदसे गिरने और संभलने दो,
मुझे मैं जो हूँ वो रहने दो,
बेतुकी बातों का पिटारा भी,
तो कभी शांत जल सी ठहरने दो,
वज़ह मैं अपने खुशी गम की रहूं,
बस मुझे मुझमे गुम रहने दो,
ए ज़िंदगी, बस मुझे मैं जो हूँ वो रहने दो।
-मलंग
©Nensi Suchak 'मलंग'
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