आज किस्मत के भरोसे कट रही ज़िन्दगी
खुले आसमान में भी कैद लगती है
नोटों के बारिशों में भीगने के मन से
रात की नींद भी अब दिन में बसती है
खामोशी पसंद मुझे सुनसान भरी
पर चलता हूं भीड़ में दौड़कर
रंजिश बहुत है खुद से मुझे पर
देखकर साज़िश भी बोला ऎतबार कर
कोशिश में जूझ रहा हर पल मै की
कभी तो रोशनी घर आएगी
पर दिल से लगता है देर हो गई
तभी लंबी है कामयाबी मेरे साए की
सहता आया हूं और सहता ही जाऊंगा
किसको पड़ी है और किसकी फिकर है
सब लड़ रहे है और सबको है बनना ......(महान)
रिश्तों के धागे में खुद बुन रहे है .......(यहां)।।
©कव्यप्रिंस
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