जिंदगी और मौत की कहासुनी
लडते-लडते जिंदगी से जाने कहाँ भटक गयी हूँ मैं
भुला कर जिंदगी की डगर मौत को गले लगाने चली हूँ मैं
ढुँढ रही हूँ दूर दूर तक न दिख रहा कोई अपना
दिखा तो बस चारों तरफ बिखरा हुआ वो सपना
खडी़ हूँ वहाँ जहाँ एक और मौत मुस्कुरा रही है
वही दूसरी राह पर खडी़ जिंदगी आंसू बहा रही है
मायुस सी होकर बोली जिंदगी मुझे क्यों छोड़ जा रही है?
बस इतना तो बता क्यों मौत को गले लगा रही है?
जरा पीछे मुड़कर तो देख पीछे खड़े तेरे अपने है
क्या उनके आंसुओं से भी ज्यादा अनमोल तेरे सपने है?
हसकर बोली मौत ये तो बस एक दिखावा है
मत आ इनकी बातों में ये जिंदगी को एक बढावा है
आएगी एक बार मेरी बाहों में तुझे अपना हर कोई नज़र आएगा
बना हुआ है दुश्मन अब तक वो भी तेरी मौत पर आंसू बहाएगा
कितना हसीन जीवन मिला है इसे जीना तो सीखु
लेकर प्यार का धागा उधेड़ सपने को सीना तो सीखु
किस्मत से ज्यादा वक़्त से पहले कहा किसी ने पाया है
सोच ले पहले अपने मन में तू यहाँ किसलिए आया है
मेरी हर साँस पर तो मेरे माता पिता का हक है
और मैं सोचती हूँ कि मुझे जिंदगी पर शक है
वापस चली जाउंगी सपनों के पीछे छोड़ दूंगी मौत का दामन
कोई कदम उठाने से पहले कुरेद लुंगी अपना मन
Zazbaaton ki diary...
Rao Hetal...
मौत को गले लगाने से पहले एक बार जिंदगी की जरूर सुन लिजीएगा....