#ग़ज़ल
हमे हर मोड़ पर आकर ये दुनिया आजमाती है।
हँसाती है कभी जी भर, कभी जी भर रुलाती है।
गज़ब फितरत, गज़ब दस्तूर है मदमस्त दुनिया की,
नज़र आओ नही दो चार दिन तो भूल जाती है।
हकीकत है यही यारो बुरे हालात पर अपने,
खड़ी होकर ये दुनिया दूर से बस मुस्कुराती है।
नए रिश्ते बनाती है, यहाँ हर रोज ये दुनिया,
मगर ईमान से ये कब कोई रिश्ता निभाती है।
हमे अक्सर ही रखती है ये अंधेरो के साये में,
कहाँ दुनिया उजालो से कभी परदा हटाती है।
अरे अविनाश अब तुम उम्र के उस मोड़ पर हो की,
ये दुनिया हर कदम पर अब नए अनुभव कराती है।
रचनाकार:- अविनाश सिंह अमेठिया
(देवरिया) +919135481448
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