लहू में दौड़ती चिंगारी थी इरादों में उसके इंकलाब थ
"लहू में दौड़ती चिंगारी थी
इरादों में उसके इंकलाब था
गुलामी की जंजीर में जकड़ा
सोच से वो मगर आजाद था
फिरंगियों के सितम की इंतहा
झेला वो तो बेहिसाब था
उम्र कच्ची थी इरादे पक्के थे
देश को करना आजाद था
-शब्दोंकीनगरी"
लहू में दौड़ती चिंगारी थी
इरादों में उसके इंकलाब था
गुलामी की जंजीर में जकड़ा
सोच से वो मगर आजाद था
फिरंगियों के सितम की इंतहा
झेला वो तो बेहिसाब था
उम्र कच्ची थी इरादे पक्के थे
देश को करना आजाद था
-शब्दोंकीनगरी