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प्यास दिल की मेरे मिलता है बढ़ा देता है
इस तरह कौन मुहब्बत का सिला देता है
बिजलियाँ दिल पे गिराता कुछ यूँ है मेरे
नजरे अपनी जब गिरा के वो उठा देता है
दर्द की कह न सकूँ अपनी जुबाँ से मैं वो
अश्क आँखों का मेरे ये सब बता देता है
ऐसे मिट सकते नहीं जख्म ये दिल के मेरे
अपने रहमो करम की क्यों तु दवा देता है
कर न गम तू मेरे जख्मो के दर्द का यारा
दर्द हमको ये मुहब्बत का मजा देता है
ज़िन्दगी गुजर रही वीरानियों में अपनी
वो सदाखुश रहने की हमको दुआ देता है
( लक्ष्मण दावानी )
17/12/2016
©laxman dawani
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