Unsplash अब ये दिसंबर भी दगाबाज़ निकला, हर याद को | हिंदी Shayari

"Unsplash अब ये दिसंबर भी दगाबाज़ निकला, हर याद को फिर से बेआवाज़ निकला। जिस सर्दी में चाहा था उसका सहारा, वो मौसम भी अब सिर्फ अल्फ़ाज़ निकला। चाय की वो महक, वो गर्मी के किस्से, इस बार सब कुछ अधूरा सा निकला। जो सोचा था मिलेगा सुकून इस सर्द में, वो दिसंबर भी बस एक अंदाज़ निकला। ©UNCLE彡RAVAN"

 Unsplash अब ये दिसंबर भी दगाबाज़ निकला,
हर याद को फिर से बेआवाज़ निकला।
जिस सर्दी में चाहा था उसका सहारा,
वो मौसम भी अब सिर्फ अल्फ़ाज़ निकला।

चाय की वो महक, वो गर्मी के किस्से,
इस बार सब कुछ अधूरा सा निकला।
जो सोचा था मिलेगा सुकून इस सर्द में,
वो दिसंबर भी बस एक अंदाज़ निकला।

©UNCLE彡RAVAN

Unsplash अब ये दिसंबर भी दगाबाज़ निकला, हर याद को फिर से बेआवाज़ निकला। जिस सर्दी में चाहा था उसका सहारा, वो मौसम भी अब सिर्फ अल्फ़ाज़ निकला। चाय की वो महक, वो गर्मी के किस्से, इस बार सब कुछ अधूरा सा निकला। जो सोचा था मिलेगा सुकून इस सर्द में, वो दिसंबर भी बस एक अंदाज़ निकला। ©UNCLE彡RAVAN

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