जो इज्जत मांगता नहीं कमाता है, उसे सर कहते हैं।
जहां लोग नहीं परिवार रहते हैं, उसे घर कहते हैं।
जहाँ झूठ की बारिश हो, उसे चुनाव कहते हैं।
जो गम गैरों से नहीं अपनों से मिले, उसे घाव कहते हैं।
जो ज़ख्मों को निचोड़ कर बनता है, उसे शराब कहते हैं।
जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए देखे गए हों, उसे ख्वाब कहते हैं।
जो मानव मानता है,उसे नहीं
जो मानवता है, उसे धर्म कहते हैं।
जो अपने लिए नहीं औरों के लिए किया गया हो, उसे कर्म कहते हैं।
जहां गणित नहीं गीता हो, उसे मन कहते हैं।
जो अपनी दुख पर नहीं औरों की भूख पर खर्च हुआ हो, उसे धन कहते हैं।
© Dheeraj kumar