उसे लगा सफर जारी है,
सफर सपाट रास्ते के उलट
नदी से आसमां की तरफ है
वो बहुत तेज और बहुत तेज चली
उसे स्मरण नही है नदी किनारे सुंदर नाव थी
जिसमे जंग लगी लोहे वाली जंजीरों से
उसके पैरों को बंधा गया था
नदी के उसपर ले जाने के लिए
जहाँ आसानी से दफनाए जा सकते हैं स्वप्न
और आजादी.........
वो तेज चली और मुँह के बल गिरी,
उठी तो उसे तैरना आ गया
खुद की बेवकूफियों पर हँसना आ गया
वो वापस लौटी वहीं
जहाँ से चली थी.........
और आजाद किया खुद को
उस जकड़ से ,जहाँ बंधे थे उसके पाँव
इसबार उसे सिर्फ लगा नही "सफर"जारी है
सच मे वो सफर ही है ........
चलने ,तैरने और उड़ने का...........
©Ankita Singh
#Smile