जो रहती थी व्यस्त सारे दिन अब माँ दिन में भी सोने | हिंदी कविता

"जो रहती थी व्यस्त सारे दिन अब माँ दिन में भी सोने लगी हैं। मुझे अब घर लौट जाना चाहिए पापा कि खांसी तेज होने लगी हैं। छोटी छोटी बातों पर माँ अड़ने लगी हैं। चेहरे पर झूरियो ने जगह लेली हैं। पापा ने खालीपन को दूर करने को सिगरेट कि वजह लेली हैं। जिसने उठाया वजन बच्चों का कोख में अब ज़रा सा चलने पर कमर अकड़ने लगी हैं जिनकी उँगलियाँ पकड़ी थी हम सबने आज हमारे सहारे कि जरुरत पड़ने लगी है। इन बातों कि चिंता आँखें भिगोने लगी हैं। घर चलना चाहिए अब मुझे पापा कि खांसी तेज होने लगी हैं। ©Dr Ravi Lamba"

 जो रहती थी व्यस्त सारे दिन अब माँ दिन में भी सोने लगी हैं।
मुझे अब घर लौट जाना चाहिए पापा कि खांसी तेज होने लगी हैं।
छोटी छोटी बातों पर माँ अड़ने लगी हैं।
चेहरे पर झूरियो ने जगह लेली हैं।
पापा ने खालीपन को दूर करने को सिगरेट कि वजह लेली हैं।
जिसने उठाया वजन बच्चों का कोख में अब ज़रा सा चलने पर कमर अकड़ने लगी हैं 
जिनकी उँगलियाँ पकड़ी थी हम सबने आज हमारे सहारे कि जरुरत पड़ने लगी है।
इन बातों कि चिंता आँखें भिगोने लगी हैं।
घर चलना चाहिए अब मुझे पापा कि खांसी तेज होने लगी हैं।

©Dr Ravi Lamba

जो रहती थी व्यस्त सारे दिन अब माँ दिन में भी सोने लगी हैं। मुझे अब घर लौट जाना चाहिए पापा कि खांसी तेज होने लगी हैं। छोटी छोटी बातों पर माँ अड़ने लगी हैं। चेहरे पर झूरियो ने जगह लेली हैं। पापा ने खालीपन को दूर करने को सिगरेट कि वजह लेली हैं। जिसने उठाया वजन बच्चों का कोख में अब ज़रा सा चलने पर कमर अकड़ने लगी हैं जिनकी उँगलियाँ पकड़ी थी हम सबने आज हमारे सहारे कि जरुरत पड़ने लगी है। इन बातों कि चिंता आँखें भिगोने लगी हैं। घर चलना चाहिए अब मुझे पापा कि खांसी तेज होने लगी हैं। ©Dr Ravi Lamba

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