अब मेहफ़िल में , घुटन होने लगे है,,
तन्हाई आनंद देने लगे हैं।
मोहब्बत कि जख्म, वर्षों पुराना था,
अब वही मरहम देने लगे हैं।
कुछ गजल, हमने जो लिखी,
एक जमाने में,
आज मेरा मन उसे गुनगुनाने लगे हैं।
देखा सावन, धरती कि गोद में,
बारिस कि पानी,
और चारों तरफ़ हरियाली खेत में ।
शब्द नहीं है, कहने को,
इस तस्वीर को देखने के बाद।
दोनों तरफ़ हरियाली,
बीच में छोटा - सा राह,
जो आकाश को धरती से मिलायी है।।
लेखक : विजय सर जी
©Vijay Kumar
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