मैंने इंतज़ार करना छोड़ दिया है..
पहले जब इंतज़ार रहता था तब वो आँखों में जम जाता था, फिर पिघल पिघल कर टपकता था। जैसे शरीर में आत्मा फंस गई हो और निकल नहीं पा रही हो।
वो क्या है कि तड़पना, झुंझलाना किसी एक का ही होता है। दो लोग जब एक दूजे को चुनते हैं.. तो कुछ पल बाद क्यों अपने ही चुनाव के साथ नहीं टिकते?
क्यों एक आगे बढ़ जाता है और उनमें से एक के हिस्से में इंतजार बच जाता है?
क्यों एक के सपने उसकी आँखों में जम जाते हैं और पिघलते रहते हैं?
मैं अपनी आँखों में अब कुछ जमने नहीं दूंगा.. न सपने.. न लम्हें.. न इंतज़ार
©Shukla Ashish
#intazaar
#waiting
#Fire