लगता था जो चाहा था, वह हो गया हासिल
फिर भी इतना बेचैन यारा,क्यों हैं मेरा दिल
दौलत मिली काबिलियत से ज्यादा मानता हूँ
फिर भी दरिया सी जिंदगी को न मिला साहिल।
इश्क की तमन्ना थी जिससे, वह भी कबूल हुई
फिर भी जाने क्यों फिरता हूँ इधर उधर हो ग़ाफ़िल।
सुकून क्या होता हैं, शायद यह न मै जान पाया,
दौलत, शोहरत के पीछे न दौड़ता, जो होता ग़ाफ़िल।
©Kamlesh Kandpal
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