#सुहागन
"जब से सुहागन हुई हु,
सब से बेगानी हुई हु,
अब सोलह श्रृंगार का अर्थ जाना है ,
एक अजनबी को अपना माना है ,
कुमकुम , मेहंदी उसके नाम के लगाई है ,
माथे की बिंदिया भी उसकी ही सजाई है ,
ये दो नैना कजरारे ,
हर दम उसकी राह निहारे ,
बंध गई मेरी जीवन की डोर उसके सहारे,
उसने मुझे नाम दिया ,
मेरा हाथ थाम लिया ,
मेरा जीवन अब बदल गया है ,
रिश्ता मेरा अब सवंर गया ,
मिले है न जाने कितने अब अनमोल रिश्ते ,
हर रिश्ते में मुझे मान मिला ,
बेटी से बहु और बहू से मां बनने का वरदान मिला ,
जब से हुई हु सुहागन ....
अब मैं आँचल फैलाती हु ,
ठंडी छाया भी बन पाती हूँ ,......
©Parul (kiran)Yadav
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