White "तीजणियों की धरती "
सोलह श्रृंगार के अखंड दीप का
कजरी के उस अरज गीत का
मंगल भोर सिन्दुरी से
दिनकर बना है साक्ष
तीजणियों की धरती पर फिर
मंद पड़ा है ताप।।
हे!चंद्रमा जल्दी आना
सुनो!चंद्रमा जल्दी आना
बाकी तुम्हारी इच्छा है
राह निहारे कुमकुम बिन्दी
मेरी सतत् प्रतीक्षा है
पर कहीं मेघों का
कर करतल स्वागत
मत लेना धीरज नाप
तीजणियों की धरती पर फिर
मंद पड़ा है ताप।।
दर्पण मेरा अचल रहे बस
जैसें तुम्हारा तेज रहे बस
गूँथा प्रतिपल अन्तरशाला में
यहीं हार मनुहार
वर्णित तेरी महिमाओं का
छलकाओं मृदु धार
गगन नयन को स्वीकृत हो
यह अर्पण अक्षत जाप
तीजणियों की धरती पर फिर
मंद पड़ा है ताप।
©Rajani Mundhra
#love_shayari