जैसे सब जीते हैं ऐसे ही क्यों जीना
वही नाच गाने,वही सब खाना पीना
हिरन के भीतर छुपी होती है जैसे कस्तूरी
ऐसे हम सब के भीतर छुपा है एक नगीना
वक़्त बेबसी में गुजर रहा है सबका कमलेश
दिन पीछे छूट रहें है, छूट रहा है महीना।
हर मौसम में सुकून की तलाश करते रहे
सुकून की तलाश छूटा है कई बार पसीना
©Kamlesh Kandpal
#sukun