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युग बदलते रहे, बदलती रही तस्वीरें,
ख्वाब बदल गए, और बदल गई तदबीरें,
हर युग में ली जाती रही ,औरत की परीक्षाएं,
हर युग में कुचल दी गई, औरत की आशाएं,
उतरना होगा उसे समर में, निज अस्तित्व बचाने को,
बचाना होगा दामन स्वयं, कृष्ण न आएगा बचाने को,
कब तलक सहेगी वो ,इस व्यभिचार की दुनिया को,
कब तक नहीं जन्मेगी वो, प्रतिकार की दुनिया को,
उस दिन ये धरती भी , चित्कार कर उठेगी,
ज़माने के समर में, ज़ब उसकी तलवार उठेगी,
उठाएगी वो शमशीर, मिटाने धरा से अनाचार,
बदल जायेगी उसकी दुनिया, ज़ब करेगी प्रतिकार,
कब तक जलती रहेगी , परीक्षाओ की अग्नि में,
समर भूमि भी हिल जाएगी, उसकी हुंकार की ध्वनि में।।
-पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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