Wo Shaam
जानते हो वो दरवाज़ा अब भी खुला है,
जहां हल्की सी दुपहरी शाम हमें देखती थी
तुम एक टक निहारे मुझे देखती
और मैं बादलों के धुंए में गुम हो जाता था
वो नीले रंग का चोला पहनकर,
झूमर सा लगती थी
दुल्हन सजी रात के सफर को तैयार
जिसका उबटन अभी तक उतरा ना हो
वो कपोल बन खिलता गुलाब
मैं उसके बालो में लगा देता था
हल्की हल्की ठंड में
लाल सूरज खत्म होने को होता
पर हमारी बात वक्त को निचोड़े
रात के पहर को चुनौती देती थी
©Naveen Chauhan
Wo Shaam
जानते हो वो दरवाज़ा अब भी खुला है,
जहां हल्की सी दुपहरी शाम हमें देखती थी
तुम एक टक निहारे मुझे देखती
और मैं बादलों के धुंए में गुम हो जाता था
वो नीले रंग का चोला पहनकर,
झूमर सा लगती थी