ग़ज़ल
बेख़बर , बेहया ,, बेहोश नहीं रह सकते
हम ग़लत बात पे "ख़ामोश" नहीं रह सकते
हर्फ़ आये न कहीं "अज़मत ए मयनोशी" पे
चंद क़तरों पे "बलानोश" नहीं रह सकते
गीदड़ों का यही कहना कि अब जंगल में
साँप रह सकते हैं "ख़रगोश" नहीं रह सकते
दिल में घर करते हैं दुख दर्द समझने वाले
दिल में "एहसान फ़रामोश" नहीं रह सकते
सारे क़ानून शरीफों के लिये बनते हैं
आप सच्चे हैं तो निर्दोष नहीं रह सकते
©DrAsad Nizami
#lonelynight