खुद का रावण जीवित रख
क्यू पुत्तला फूक रहे हो
एक चिंगारी देना खुद के भीतर
यदि मन में आग लगा सको तुम ।।
रावण इतना नीच नहीं था
जितना हम खुद का मन कर बैठे हैं
अपनी आशा तृष्णाओं से
हम भी तो एक रावण बन बैठे हैं।।
रावण का पुतला जला सके
इतना सामर्थ कहा हम में
क्या बता सकते हो एक गुण भी
जो रावण से बेहतर हो तुममें ।।
इसलिए रावण को जलाने का
ख़्वाब मन से हटा दो तुम
हो सके तो इस दशहरे पर
मन के रावण में आग लगा दो तुम।।
(m.bhatt)
©Manoj Bhatt
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