हाथों की लकीरें यकीनन मिटने लगी..! लहू - ए - त

"हाथों की लकीरें यकीनन मिटने लगी..! लहू - ए - तहरीरें दफ़तन जलने लगी..!! मिरे ख्वाहिश के आईने पर धूल क्या जमी..! कागजों पर लहू की बूंदें भी सूखने लगी..!! जो चला हर दफा मेरे साथ साय की तरह..! इक दौर-ए-मोहब्बत की उम्र घटने लगी..!! बहुत गुमान था इन हाथों की लकीरों पर..! झोली फकीरों की है लकीरें कहने लगी..!! मेरी दहलीज पर रेखाएं सख्त खींची गई..! जबसे हिज़्र नफ़स बनकर साथ रहने लगी..!! दरख़्त से टूटकर महज़ पत्ता हाथ ना लगा..! बाज़ार-ए-जिस्म की आंधियाँ चलने लगी..!! खुद की तस्वीर का अक़्स नजर न आता..! चेहरा-ए-गमज़दा पर लकीरें उभरने लगी..!! ©Darshan Raj"

 हाथों  की  लकीरें  यकीनन  मिटने लगी..!
लहू - ए - तहरीरें  दफ़तन  जलने  लगी..!!

मिरे ख्वाहिश के आईने पर धूल क्या जमी..!
कागजों पर लहू की बूंदें भी सूखने लगी..!!

जो चला हर दफा मेरे साथ साय की तरह..!
इक  दौर-ए-मोहब्बत की उम्र घटने लगी..!!

बहुत गुमान था इन हाथों की लकीरों पर..!
झोली फकीरों की है लकीरें कहने  लगी..!!

मेरी दहलीज पर रेखाएं  सख्त खींची गई..!
जबसे हिज़्र नफ़स बनकर साथ रहने लगी..!!

दरख़्त से  टूटकर महज़ पत्ता हाथ ना लगा..!
बाज़ार-ए-जिस्म की आंधियाँ चलने लगी..!!

खुद की तस्वीर  का अक़्स  नजर न आता..!
चेहरा-ए-गमज़दा पर लकीरें उभरने लगी..!!

©Darshan Raj

हाथों की लकीरें यकीनन मिटने लगी..! लहू - ए - तहरीरें दफ़तन जलने लगी..!! मिरे ख्वाहिश के आईने पर धूल क्या जमी..! कागजों पर लहू की बूंदें भी सूखने लगी..!! जो चला हर दफा मेरे साथ साय की तरह..! इक दौर-ए-मोहब्बत की उम्र घटने लगी..!! बहुत गुमान था इन हाथों की लकीरों पर..! झोली फकीरों की है लकीरें कहने लगी..!! मेरी दहलीज पर रेखाएं सख्त खींची गई..! जबसे हिज़्र नफ़स बनकर साथ रहने लगी..!! दरख़्त से टूटकर महज़ पत्ता हाथ ना लगा..! बाज़ार-ए-जिस्म की आंधियाँ चलने लगी..!! खुद की तस्वीर का अक़्स नजर न आता..! चेहरा-ए-गमज़दा पर लकीरें उभरने लगी..!! ©Darshan Raj

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