कितने ताइर क़ैद है उसकी आँखों के ज़िंदानों में
चर्चा ज़ोरों पर है इक सय्यादी की काशानों में
नशा असल में तो बस उसके शीरीं लब ही रखते हैं
पागल हैं वो लोग जो पीने जाते हैं मयख़ानों में
बात हसीं शामों की हो या तन्हा भीगी रातों की
बस उसका ही ज़िक्र मिलेगा मेरे इन अफ़्सानों में
नहीं मिला वो सूना-पन जो टूटे दिल में होता है
मैंने जा कर देखा है, सहराओं में, वीरानों में
ख़्वाब परस्तिश' जिसके देखे वो सच से वाबस्ता हो
एक यही अरमाँ है शामिल मेरे सब अरमानों में
©Parastish
ताइर - पंछी
ज़िंदानों - क़ैद ख़ानों
सय्यादी - शिकारी
काशानों - घरों
शीरीं लब - मीठे लब
सहराओं - रेगिस्तानों
वाबस्ता - जुड़ा हुआ