उभरे हुए दर्द को आज भी छुपाती हू मैं भीड़ मे अक्सर | हिंदी Poetry

"उभरे हुए दर्द को आज भी छुपाती हू मैं भीड़ मे अक्सर कम जाया करती हू सवाल जबाब मे उलझी ये जिंदगी बड़ी रंग दिखती है मैं खामोशी से सब समझ जाया करती हू काग़ज़ पर लिख के जब ज़ख्म मिटाती हू चिथड़े हो जाते हैं दिल के जब जज्बातों को ख़ुद मे तोड़ दिया करती हू ©chandni"

 उभरे हुए दर्द को आज भी छुपाती हू
मैं भीड़ मे अक्सर कम जाया
करती हू

सवाल जबाब मे उलझी ये जिंदगी
बड़ी रंग दिखती है मैं खामोशी
से सब समझ जाया
करती हू

काग़ज़ पर लिख के जब ज़ख्म
मिटाती हू चिथड़े हो जाते हैं
दिल के जब जज्बातों
को ख़ुद मे तोड़ दिया 
करती हू

©chandni

उभरे हुए दर्द को आज भी छुपाती हू मैं भीड़ मे अक्सर कम जाया करती हू सवाल जबाब मे उलझी ये जिंदगी बड़ी रंग दिखती है मैं खामोशी से सब समझ जाया करती हू काग़ज़ पर लिख के जब ज़ख्म मिटाती हू चिथड़े हो जाते हैं दिल के जब जज्बातों को ख़ुद मे तोड़ दिया करती हू ©chandni

#Bheed

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