मेरी मोहब्बत का तमाशा बनाया गया,
मुसाफ़िर था मैं, मुझे खानाबदोश बनाया गया।
जिस दिल में बसाई थी तसवीर तेरी,
उसी दिल को नज़र-ए-बद बनाया गया।
मेरी नियाज़-ए-दिल की कीमत न समझी गई,
हर धड़कन को दर्द का पैग़ाम बनाया गया।
इबादत थी मेरी, जुर्म नहीं,
फिर भी हर दुआ को इल्ज़ाम बनाया गया।
फलक से गिरते सितारों ने पूछा,
क्यों तेरे ख्वाबों का कत्ल-ए-आम किया?
मैंने कहा, ये खेल-ए-वफा है शायद,
जहां मोहब्बत को अय्याम बनाया गया।
अब नियाज़-ए-जज़्बात भी खामोश हैं,
न अश्क़ बहे, न कोई सदा रही।
जिन लम्हों में सजदा किया था तेरा,
उन लम्हों को सजा-ए-वफ़ा दी गई।
©Niaz (Harf)
#GoodNight