खुद को चुनो खुद को चुनो, जब राहें कठिन हों, अंधेर | हिंदी कविता

"खुद को चुनो खुद को चुनो, जब राहें कठिन हों, अंधेरों में भी जब सपने जवां हों। तूफानों में भी रुक न सको, अपने अंदर हिम्मत जगा लो। खुद को चुनो, जब दुनिया ठुकराए, अपने कदमों से मंज़िल बनाओ। हर ओर से जब सवाल उठे, अपने उत्तर से राह सजाओ। खुद को चुनो, जब कोई न साथ हो, अपने साहस को साथी बना लो। संघर्ष में भी मुस्कान रखो, अपने दिल से पुल बना लो। खुद को चुनो, हर सुबह, हर शाम, खुद की पहचान को खुद से रचो। दुनिया की परवाह छोड़कर, अपने सपनों को साकार करो। ©Balwant Mehta"

 खुद को चुनो

खुद को चुनो, जब राहें कठिन हों,
अंधेरों में भी जब सपने जवां हों।
तूफानों में भी रुक न सको,
अपने अंदर हिम्मत जगा लो।

खुद को चुनो, जब दुनिया ठुकराए,
अपने कदमों से मंज़िल बनाओ।
हर ओर से जब सवाल उठे,
अपने उत्तर से राह सजाओ।

खुद को चुनो, जब कोई न साथ हो,
अपने साहस को साथी बना लो।
संघर्ष में भी मुस्कान रखो,
अपने दिल से पुल बना लो।

खुद को चुनो, हर सुबह, हर शाम,
खुद की पहचान को खुद से रचो।
दुनिया की परवाह छोड़कर,
अपने सपनों को साकार करो।

©Balwant Mehta

खुद को चुनो खुद को चुनो, जब राहें कठिन हों, अंधेरों में भी जब सपने जवां हों। तूफानों में भी रुक न सको, अपने अंदर हिम्मत जगा लो। खुद को चुनो, जब दुनिया ठुकराए, अपने कदमों से मंज़िल बनाओ। हर ओर से जब सवाल उठे, अपने उत्तर से राह सजाओ। खुद को चुनो, जब कोई न साथ हो, अपने साहस को साथी बना लो। संघर्ष में भी मुस्कान रखो, अपने दिल से पुल बना लो। खुद को चुनो, हर सुबह, हर शाम, खुद की पहचान को खुद से रचो। दुनिया की परवाह छोड़कर, अपने सपनों को साकार करो। ©Balwant Mehta

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