किताबे छुटी फिर हम खुद ही किताबो के ठेकेदार हो गए | हिंदी शायरी

"किताबे छुटी फिर हम खुद ही किताबो के ठेकेदार हो गए कितनी आई कितनी गई हातो से जो पसंद थी जो भी हम अपने पास ना रख सके ©Parmeshwar Janjire"

 किताबे छुटी फिर हम खुद ही किताबो के ठेकेदार हो गए
कितनी आई कितनी गई हातो से
जो पसंद थी जो भी हम अपने पास ना रख सके

©Parmeshwar Janjire

किताबे छुटी फिर हम खुद ही किताबो के ठेकेदार हो गए कितनी आई कितनी गई हातो से जो पसंद थी जो भी हम अपने पास ना रख सके ©Parmeshwar Janjire

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