ज़िन्दगी का सफर ये सफ़र भी, कितना सुहाना हो जाता है।
जब, ख्वाबों में होने वाला, बाहों में हो जाता है।
सफ़र में ये इंतज़ार, अकेले हो तो सताता है ।
मगर साथ हो हमसफ़र,तो मन को भाता है।
जैसे जैसे ,ये सफ़र,मंज़िल के करीब आता है।
हमारा सुकून,न जाने क्यों,हमसे छिन जाता हैं।
लगता है,जिंदगी को मज़ा,सफ़र में ही,आता है।
©दिल की आवाज़ Aakash chhipne