किसी गरीब मजलूम को सताने नही आना अपने मगरमच्छ के आ | हिंदी शायरी

"किसी गरीब मजलूम को सताने नही आना अपने मगरमच्छ के आंसू बहाने नहीं आना खड़ा हुआ है बड़ी मुश्किल से अपने पैरों पर खुदा के वास्ते उसको अब गिराने नहीं आना जरुरत थी तुम्हारी जब कभी देखा नही तुमने अब कभी मिलने तुम किसी बहाने नही आना जो भी गम मिला उसको वो हंस कर सह लेगा गमों पर तुम कभी अफसोस जताने नही आना उसके जैसे ही तमाम लोग दुनिया में हैं संजय उनकी तस्वीर को अखबार मे सजाने नही आना ©संजय श्रीवास्तव"

 किसी गरीब मजलूम को सताने नही आना
अपने मगरमच्छ के आंसू बहाने नहीं आना

खड़ा हुआ है बड़ी मुश्किल से अपने पैरों पर
खुदा के वास्ते  उसको अब गिराने नहीं आना

जरुरत थी तुम्हारी जब कभी देखा नही तुमने
अब कभी मिलने तुम किसी बहाने नही आना

 जो भी गम मिला उसको वो हंस कर सह लेगा
 गमों पर तुम कभी अफसोस जताने नही आना

उसके जैसे ही तमाम लोग दुनिया में हैं संजय
उनकी तस्वीर को अखबार मे सजाने नही आना

©संजय श्रीवास्तव

किसी गरीब मजलूम को सताने नही आना अपने मगरमच्छ के आंसू बहाने नहीं आना खड़ा हुआ है बड़ी मुश्किल से अपने पैरों पर खुदा के वास्ते उसको अब गिराने नहीं आना जरुरत थी तुम्हारी जब कभी देखा नही तुमने अब कभी मिलने तुम किसी बहाने नही आना जो भी गम मिला उसको वो हंस कर सह लेगा गमों पर तुम कभी अफसोस जताने नही आना उसके जैसे ही तमाम लोग दुनिया में हैं संजय उनकी तस्वीर को अखबार मे सजाने नही आना ©संजय श्रीवास्तव

#Journey

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