हम मीले, घुले, बैठे और झगडे भी,फिर जो किसी ने नहीं सोचा वो होने लगा,
मे तो कभी दोस्ती के रीश्ते मे मानती ही नहीं थी,
परिवार आगे कोई और रिश्ता जानती ही नहीं थी,
पर अपनेआप ही दोस्ती के सफर मे बढऩे लगी था।
अब तो तुम्हारे किस्स सुनने कि मुझे आदत सी हो गई थी,
तूम्हारी हर मूश्केली को अपनी परेशानी बना लेना मेरी जिद्द ही बन गई थी।
©Urvisha Parmar
#अनचाही_दोस्ती_कि_शुरुआत2
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