"बारिश जहाँ की हमने मोहब्बत की , अफसोस वो बंजर ज़मीं थी .....
वो तो मुस्कुरा रहे थे जनाब , आखों में तो हमारी नमीं थी .....
भुला देंगे उसको इस कदर , जैसे लगे कभी ना हमें उसकी कमी थी .....
और कपड़े उतारती होगी मोहब्बत तुम्हारी , हमारी मोहब्बत तो लिबास में ढकी थी×2.....
©Khamosh Alfaaz ( Rinki )"