एक से बढ़कर एक दलालों की दलील से। झूठे, मक्कार | हिंदी कविता

"एक से बढ़कर एक दलालों की दलील से। झूठे, मक्कारों से मिलती हर जलील से। सत्य बड़ा हो परेशान फिर डर जाता है। और कभी इस तरह निरादर अपना पाकर। जब तक लड़ पाता लड़ता फिर मर जाता है।। समय आजकल ठीक नही न्यायालय में भी। 'सत्यमेव जयते' पोषक विद्यालय में भी। सच को खुद को 'सच' साबित करना होता है। और अगर ना कर पाए सच खुद को साबित। उसको झूठा घोषित हो मरना होता है।। अपने - अपने स्तर पर सब सच कहते हैं। चोरी ना कर सके तो खुद को सच कहते है। सच के चोले में आकर्षक स्वांग रचाकर। नीतिपरक उपदेश और कुछ उक्ति सुनाकर। ऐसा लगता है सब झूठे सच कहते हैं।। ..............कौशल तिवारी . . ©Kaushal Kumar"

 एक  से  बढ़कर  एक  दलालों की दलील से।
झूठे,  मक्कारों   से  मिलती  हर  जलील  से।
सत्य  बड़ा  हो  परेशान  फिर  डर  जाता  है।
और  कभी  इस  तरह निरादर अपना पाकर।
जब तक लड़ पाता लड़ता फिर मर जाता है।।

समय  आजकल  ठीक नही न्यायालय में भी।
'सत्यमेव  जयते'   पोषक   विद्यालय  में  भी।
सच को खुद को 'सच' साबित करना होता है।
और अगर ना कर पाए सच खुद को साबित।
उसको   झूठा   घोषित  हो   मरना  होता  है।।
                           
अपने - अपने  स्तर  पर  सब  सच कहते हैं।
चोरी ना कर सके  तो खुद को सच कहते है।
सच  के  चोले  में  आकर्षक  स्वांग रचाकर।
नीतिपरक उपदेश और कुछ उक्ति सुनाकर।
ऐसा  लगता   है   सब  झूठे  सच  कहते  हैं।।
                                 ..............कौशल तिवारी




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©Kaushal Kumar

एक से बढ़कर एक दलालों की दलील से। झूठे, मक्कारों से मिलती हर जलील से। सत्य बड़ा हो परेशान फिर डर जाता है। और कभी इस तरह निरादर अपना पाकर। जब तक लड़ पाता लड़ता फिर मर जाता है।। समय आजकल ठीक नही न्यायालय में भी। 'सत्यमेव जयते' पोषक विद्यालय में भी। सच को खुद को 'सच' साबित करना होता है। और अगर ना कर पाए सच खुद को साबित। उसको झूठा घोषित हो मरना होता है।। अपने - अपने स्तर पर सब सच कहते हैं। चोरी ना कर सके तो खुद को सच कहते है। सच के चोले में आकर्षक स्वांग रचाकर। नीतिपरक उपदेश और कुछ उक्ति सुनाकर। ऐसा लगता है सब झूठे सच कहते हैं।। ..............कौशल तिवारी . . ©Kaushal Kumar

#सत्यआजकल

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