White हमने कब चाहा था नूपुर घन सघन बजे जब कोई रस | हिंदी कविता

"White हमने कब चाहा था नूपुर घन सघन बजे जब कोई रस ना था जब भी तृषा ना बड़ी बस अनंत एक समतल था जहाँ मौन मुझे घेरे खड़ा और प्रीत दूजा कौन था करुणा अंबर फाड़ बरसती शून्य में फैला यही अनंत था ©Kavitri mantasha sultanpuri"

 White हमने कब चाहा था
नूपुर घन सघन बजे 
जब कोई रस ना था
जब भी तृषा ना बड़ी
बस अनंत एक समतल था
जहाँ मौन मुझे घेरे खड़ा
और प्रीत दूजा कौन था
करुणा अंबर फाड़ बरसती
शून्य में फैला यही अनंत था

©Kavitri mantasha sultanpuri

White हमने कब चाहा था नूपुर घन सघन बजे जब कोई रस ना था जब भी तृषा ना बड़ी बस अनंत एक समतल था जहाँ मौन मुझे घेरे खड़ा और प्रीत दूजा कौन था करुणा अंबर फाड़ बरसती शून्य में फैला यही अनंत था ©Kavitri mantasha sultanpuri

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